एक छोटे से गांव में लखन नाम का एक दयालु किसान रहता था। जोकि अपनी उदारता के लिए पूरे गांव में जाना जाता था। वह अक्सर अपने पड़ोसियों और पास के गांव वालों के साथ अपनी फसल साझा करता था। एक बार बहुत भीषण गर्मी में, भयंकर सूखे ने ज़मीन को जकड़ लिया, जिससे सभी फ़सलें सूख गईं। गाँव वालों को भूखमरी का सामना करना पड़ा, उनका उत्साह और मनोबल कमजोर होता जा रहा था।
लखन भी पीड़ित था, उसने अपनी कम फसल का एक हिस्सा बचा लिया। जब उसके पड़ोसियों के लिए भूख की पीड़ा असहनीय हो गई, तो उसने सच्चे हृदय से अपना कीमती भोजन बाँट दिया। उसके निस्वार्थ कार्य ने गांव वालों के मन में आशा की किरण जगाई। उसकी दयालुता से प्रेरित होकर, दूसरों ने भी उसका अनुसरण किया और जो कुछ खाद्य पदार्थ उनके पास था, उसे बाँट दिया।
लखन के नेक काम की खबर फैल गई। दूसरे गाँवों से लोग भोजन लेकर आए। इसी तरह एक उजाड़ गाँव करुणा की किरण में बदल गया। विपत्ति और लखन की दयालुता के कार्य से एकजुट ग्रामीणों ने इस तूफान का सामना किया।
जब बारिश हुई, तो ज़मीन फिर से जीवंत हो हरी भरी हो गई लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्रामीणों ने सहानुभूति और साझा करने की शक्ति को पहचान लिया था।
शिक्षा - लखन ने मनुष्यता से मनुष्यों का मार्गदर्शन कर दिया । सबसे अंधकारमय समय में भी दयालुता मार्ग को रोशन कर सकती है।