रे उड़ जा ओ पंछी
लुप्त छायामें दूर कहीं
काया का कोई, भरोसा नहीं
रे उड़ जा ओ पंछी.....
आना-जाना, भेद-भरम का
मिट्टी के पुतले, मिट्टीमें मिलना
कौन जाने, कल किसने देखा
रे उड़ जा ओ पंछी.............
ऊँचे व्योम जगत में
कुछ तो है पर, कुछ भी नहीं
हवामें चलना, हवामें मिलना
हवा का कोई रूप नहीं
रे उड़ जा ओ पंछी.........
सांसो का थमना
जीवन का रुकना
अस्त सूरज का, जैसे होना
अहम् को छोड़ो, अमर काया नहीं
रे उड़ जा ओ पंछी.......
माया-मोह मोड़ ये बदले
कर्म तेरा आधार सही
न कुछ लाया, न कुछ पाया
जो था उधार हिसाब यहीं
उसके आगे, कुछ भी नहीं
एक क्षण ठहराव नहीं
रे उड़ जा ओ पंछी........