मन को इतना अधिक रूलाया
तन का दरिया सूख गया
जिस दर्पण में चेहरा देखा
वो दर्पण ही टूट गया।
हद से ज्यादा रूप किसी का
आफत का है परकाला
एक कली क्या खिली बाग में
घर घर उसका रूप गयाI
दास तुम्हारी जिद की खातिर
हम सूली पर चढ़ते हैं
जबसे तुमको है अपनाया
अपना सब घर वर छूट गया II