आंखों में यह अरमान लिए फिरता हूं,
आजादी का फरमान लिए फिरता हूं,
आंखों में वह तूफान लिए फिरता हूं
बाहों में अभिमान लिए फिरता हूं
कंधों पर मां भारती की जान लिए फिरता हूं,
मैं सव देश का प्यार लिए फिरता हूं,
मैं चढ़ता हूं तग घाटियों में कई बार उठा करता हूं ,
मातृभूमि के गहरे घाव अपने लहू से भरता हूं
मैं सैनिक हूं इस भारत देश का आंखों में मेरे तूफान है
मेरी आन बान शान सब राष्ट्र पर कुर्बान है,
मैंने तो शब्दों को पीरो कर कविता बनाई है,
लेकिन क्या हमने उन वीरों को भुलने की सौगंध खाई है,
ठंडी सिकुड़ती रातों में सियाचिन के ग्लेशियर पिघल रहे,
ऐसी डरावनी रातों में यह सैनीक,कितने निडर रहे,
----अशोक सुथार

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




