बस किसी तरह से, मुकम्मल अब सफ़र हो..
रात ढलती–ढलती, ढल जाए और सहर हो..।
दुनिया ये उसूल बनाती है, जाने किसके लिए..
हम बे–उसूल बना दें, हाथ में हमारे अगर हो..।
बहुत ख्वाहिशें तो, दिल में ही रह गई हमारे..
बस ये कि, जहां तेरा घर हो वहां मेरा घर हो..।
तेरे शहर में कितनी, वारदातें दफ़्न हो गई हैं..
उनमें शामिल, कल हमारी भी कोई ख़बर हो..।
वहम सब मिट से गए हैं, बस इतना हो जाए..
होठों पर मुस्कान रहे, चाहे आंखों में समंदर हो..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




