(माँ की स्मृति में समर्पित)
छाँव थी तू तपती धूप में,
हर साँझ सजी तेरे रूप में।
तेरे बिना सूनी हर बात,
तेरे बिना अधूरा दिन-रात।
आँचल तेरा जैसे आकाश,
हर डर, हर दुख का था नाश।
तेरी ममता की वह गर्माहट,
अब भी महकती हर इक आहट।
तेरी थपकी, तेरी लोरी,
अब भी गूँजें पलकों की कोरी।
आँखें ढूँढें तेरा चेहरा,
मन पुकारे – “माँ! बस एक दफ़ा।”
तेरे बिना ये घर तो है,
पर घर जैसा कुछ भी नहीं।
तेरे नाम से हर कोना बोले,
पर तू ही अब कहीं नहीं।
फूल-सी कोमल, दीप-सी ज्योति,
तेरे संग हर बात थी स्वर्ण-रेख।
अब बस यादें हैं, और तन्हाई,
फिर भी तू है – मेरी परछाईं।
माँ, तू नहीं फिर भी साथ है,
तेरी सीखों में जीवन का पाठ है।
जब-जब हारूँ, तुझे पुकारूँ,
माँ! तू आकर मुझे सँवारें
।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




