धूमिल हो जाती हैं आशाएँ
जब अपने ही लोग ताना मारे,
अपने ही लोग बेसहारा कर दें,
जब तन्हाइयों का साथ लेना पड़े,
जब अपने दर्दों को ढोना पड़े,
जब हमसे हमारी आजादी छीन ले और
खुद बेशर्मों की तरह हम पर हँसने लगे,
आशा की कोई किरण न दिखे,
जीवन को नर्क से भी बत्तर बना दे,
तब धूमिल हो जाती हैं आशाएं.....।।
–सुप्रिया साहू