जिसके चेहरे से मुस्कान न जाए।
उसको तनिक भी गुमान न भाए।।
शिक्षा हासिल करने शहर में आई।
उसे शहर की दिनचर्या न सुहाए।।
सफर के किस्से अनमोल बन गए।
किसी भी दाम में अपमान न भाए।।
मन बेकाबू फिर भी दिल पर काबू।
सब्र का धीरज डोले अमन न पाए।।
सीधी-सादी सीख ले रही 'उपदेश'।
मंज़िल के बिना उसको चैन न आए।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद