धूप में भी चांदनी को ढूंढता है आदमी
और हकीकत को हमेशा भूलता है आदमी
कौन उसको याद करता है खुशी के दौर में
दर्द मिलते ही खुदा को पूजता है आदमी
मिल गई जिसको धरोहर जिन्दगी में प्यार की
बिन पिए ही वो झूमता है आदमी
जब भी रिश्तों की लगी हैं बोलियाँ बाजार में
अर्थ की दहलीज को ही चूमता है आदमी
कौन आएगा भला अब दास इस वीरान में
रूप के आगोश में ही झूलता है आदमी !!
मेरी यह रचना दो वर्ष पूर्व अमर उजाला की वैबसाइट पर उपलब्ध की गई है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




