सच ही सचमुच सच का दुश्मन हो जाता है
सच कहने से ये झूंठ भला कब मिट पाता है
सच कहने और दिखाने वाला दर्पण तक भी
धुंधला होते ही कूड़े संग फेंक दिया जाता है
झूंठ बोलकर बढ़ते जाते हैं मीलों सब आगे
सच का इस दुनियां में पिछड़ेपन से नाता है
कहाँ अकेला चना यहां पे भाड़ भला फोड़ेगा
झूंठ हमेशा रहा यहीं सच बस आता जाता है
किरचा किरचा दास बेचारे सच का दिल भी
रोज दवा और दुआ का नया नुस्खा खाता है II