एक-एक तिनका जोड़ के लाई,
नन्ही चिड़िया घोंसला बनायी
ना कश्ती थी, ना कोई किनारा,
फिर भी मन में उम्मीदों का सहारा।
साँझ-सवेरे उड़ती जाती,
जहाँ से भी कुछ मिल पाता – लाती।
सूखा तिनका, टूटी डाली,
हर चीज़ में उसने खुशियाँ डाली।
धूप में तपती, बरसात सहती,
पर अपने घर को सबसे कहती –
“ये मेरा है, मैंने बनाया,
प्यार से एक-एक कोना सजाया।”
पर इक दिन आया ज़ोर का तूफ़ान,
बिखर गया उसका सारा जहान।
किसी ने हँसकर कहा –
“अरे! क्या था इसमें?
बस तिनके थे,
उड़ गए ज़रा सी हवा में!”
चिड़िया बैठी, पलकों में नमी,
फिर भी थी उसके मन में कमी नहीं।
फिर से उड़ चली नयी सुबह में,
वही हौसला, वही चुप्पी लब में
घोंसले टूटते हैं बार-बार,
पर हिम्मत ना हो कभी लाचार।
सपनों को फिर से बुनना सीख,
यही है असली जीवन की सीख।”

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




