गाली सुनने आया रिश्ता मुकद्दर का।
चादर निहारता रहा अपने बिस्तर का।।
आबोहवा ने ढूँढ लिया चेहरा टटोलती।
लो पसीना सूख गया अन्दर बाहर का।।
हर घड़ी उलझना पड़ा अपनी जननी से।
मोहब्बत का तरीका चलन शहर का।।
जबरदस्ती उठा ले गए सैर-सपाटा को।
दिखाना चाहते मुझे तमाशा नजर का।।
एक जैसे लग रहे मुखौटा लगाए लोग।
अभी देखना 'उपदेश' सौदा नासिर का।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद