कापीराइट गजल
कुछ बात अलग थी तुम्हारी बातों में
मुझे आस बहुत थी तुम्हारी बातों में
तेरी कातिल नजर से हुए हैं घायल
जब भी देखा मैंने, तुम्हारी आंखों में
अब सताते हैं रोज जलवे ये तुम्हारे
लगाते हैं ये आग नई मेरे जज्बातों में
यूं मुस्कुराना और वो हंसना तुम्हारा
जगाए हैं कई अरमां इसने रातों में
गिराती हो जब तुम उठा के पलकें
बिजली ये गिराती हैं मेरी आंखों में
बेखबर हो तुम या बेरूखी है तेरी
एक अन्दाज नया है तुम्हारी बातों में
चले गए वो दिखाके झलक यादव
क्या कहें उनसे हम ऐसे हालातों में
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है