कैसा है तेरा ह्रदय ?
कैसी है तेरी भुजाएँ ?
कैसा है तेरा सामर्थ्य ?
कैसा तेरा सौंदर्य ?
मै समझ नहीं पाता हूँ
तुझे आँखों में देख नहीं पाता हूँ
पिता ने कहा,
राज-पाट छोड़ दो
तुमने छोड़ दिया
पिता ने कहा,
संन्यासी बनो, वन वन भटको
धनुष्य उठाये तुम चल पड़े
एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा
न आँखों में आँसू
न वियोग का दुःख
मोह-माया से परे
हे भगवंत...
तुम कैसे हो?
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️