ये हिजाब-ए-शर्म नहीं है, अक़्ल पे लगा ताला है, जो हद् बताए औरत को, वो दुनिया ही नाक़िस है।
उसे ज़र्फ़-ए-नज़र कहते हो, जिसे क़ैद बना डाला, हुस्न तो इल्म में है, बाक़ी सब फ़ुज़ूल का हाला है।
मेरा वजूद क़िस्सा नहीं, जो आवाज़ का मोहताज रहे, ख़ामोशी में भी सदियाँ बोलती हैं, ये ईमान मेरा आला है।
तुमने नग़्मा समझा जिसे, वो अस्ल में बरहम साज़ था, जिस दिन वो खुलके बोलेगी, तुम्हारा सिंहासन काला है।
परदे में रखने वालों की नीयत पे शुब्हा है हमें, ख़ुद की कमज़ोरी छुपाने को अस्मत का दिया चढ़ावा है।
अरे वो ताज कहाँ रखते हैं जो क़ुदरत ने सँवारा है, उसे दरख्त न समझो, जो ज़िंदगी का सहारा है।
तुम उसे क़ैद कहते हो, जिसे ख़ुद ने इख्तियार किया, क़ैद तो वो ज़ेहन है जिसका दरो दीवार पुराना है।
ज़रा देखो तो मेहनत से चमकती हुई आँखों में, वहाँ कोई ख़्वाब नहीं, हर शब एक नया उजाला है।
जिसे सिर्फ़ बर्तन समझा, उसने रिश्तों को सँभाला है, ये जहाँ अब आवाज़ दे, उसने हर फ़र्ज़ निभा डाला है।
फ़रेब है ये नज़र का जो सिर्फ़ जिस्म तक ठहरता है, रूह को पहचानो नादानों, जहाँ इश्क़ का अज़्म निराला है।
- ललित दाधीच

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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