हम तेरे क़ाबिल थे ऐ महबूब,
क्यों तूने हमे अपने क़ाबिल समझा नहीं।
हम किसी के पैरों की धूल नहीं,
माथे पर लगने वाला चंदन थे
पर तूने हमे कभी कुछ समझा ही नहीं।
जानते हैं पछतावा अब बहुत है तुम्हें,
सोच रहा है ऐसा किया क्यों मैंने,
जानते हैं पछतावा अब बहुत है तुम्हें,
सोच रहा है ऐसा किया क्यों मैंने।
ये थी मेरी बद नसीबी
या बह गया था मैं किसी के बहकावे में।
आज हर पल तू दर्द महसूस कर रहा है,
सोच रहा है, क्यों छोड़ दिया था मैंने उसे।
नावजुद कहकर जिसे ठुकराया था मैंने,
आज वजूद उसका कितना चमक रहा है।
जानते हैं पछतावा अब बहुत है तुझे
देख मेरी कामयाबी, सोच रहा है ठुकरा दिया मैंने किसे ?
क्या यही है मेरी नाकामयाबी।
समझ रहे हैं अब तेरे दिल का हाल क्या है,
सोच रहा है तू, मैंने कितना ग़लत समझ लिया था उसे। मेरी अक्ल पर पत्थर पड़े थे,
जो नाचीज़ समझ लिया था मैंने उसे।
-रीना कुमारी प्रजापत