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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

हम तेरे काबिल थे ऐ महबूब

हम तेरे क़ाबिल थे ऐ महबूब,
क्यों तूने हमे अपने क़ाबिल समझा नहीं।
हम किसी के पैरों की धूल नहीं,
माथे पर लगने वाला चंदन थे
पर तूने हमे कभी कुछ समझा ही नहीं।

जानते हैं पछतावा अब बहुत है तुम्हें,
सोच रहा है ऐसा किया क्यों मैंने,
जानते हैं पछतावा अब बहुत है तुम्हें,
सोच रहा है ऐसा किया क्यों मैंने।
ये थी मेरी बद नसीबी
या बह गया था मैं किसी के बहकावे में।

आज हर पल तू दर्द महसूस कर रहा है,
सोच रहा है, क्यों छोड़ दिया था मैंने उसे।
नावजुद कहकर जिसे ठुकराया था मैंने,
आज वजूद उसका कितना चमक रहा है।

जानते हैं पछतावा अब बहुत है तुझे
देख मेरी कामयाबी, सोच रहा है ठुकरा दिया मैंने किसे ?
क्या यही है मेरी नाकामयाबी।

समझ रहे हैं अब तेरे दिल का हाल क्या है,
सोच रहा है तू, मैंने कितना ग़लत समझ लिया था उसे। मेरी अक्ल पर पत्थर पड़े थे,
जो नाचीज़ समझ लिया था मैंने उसे।
-रीना कुमारी प्रजापत




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

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Bhushan Saahu said

Bahut sahi...insan ki kimat uske bichhdane ke bad hi hoti h.

Lekhram Yadav said

मेरी प्यारी बहना कविता अच्छी है , लोग सिर्फ कविता ही पढ़ेंगे आप के दिल का हाल सिर्फ आप ही अनुभव करेंगी।

रीना कुमारी प्रजापत replied

यही हक़ीक़त है खुद को खुद ही समझ सकते हो और कोई नहीं... बहुत बहुत आभार आपका

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Sundar rachna bahut khoob aapki kalpnik kavitayein bhi wastvik prateet hoti hain sab kalam aur bhavnaon ka kamaal hai...✍️👏👏👌👌🙏🙏

रीना कुमारी प्रजापत replied

जी धन्यवाद!

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