विविध रंगों से रंग दो सर्वजन के अंग-अंग,
नृत्य करता फिरे मन प्रियवर के संग-संग,
भाव के रंगों से हो जाए विलीन तम कलुष,
मन से मन का मिटा कर भेद मन रंग जाए,
ऐसा रंग लगा दो प्रियवर अंतर्मन रंग जाए,
भावों के रंगों से प्रियवर अंतरतम रंग जाए।
लाल से प्रेम और उत्साह, नीला से निश्छलता,
हरा से आत्म शांति, गुलाबी जो बढ़ाए मित्रता,
पिला से पवित्रता, हम सब यह गुण अपनाएँ,
ईर्ष्या, द्वेष से परे इन गुणों से जन रंग जाएँ,
ऐसा रंग लगा दो प्रियवर अंतर्मन रंग जाए,
भावों के रंगों से प्रियवर अंतरतम रंग जाए।
अबीर, गुलाल व रंग से रंग जाए सारा संसार,
मादक पदार्थों से रहो दूर, फिर बरसेगा प्यार,
पूर्णिमा का चाँद, उसकी चाँदनी में रंगी प्रकृति,
प्रेम के रंगों से तन, मन, यह जीवन रंग जाए,
ऐसा रंग लगा दो प्रियवर अंतर्मन रंग जाए,
भावों के रंगों से प्रियवर अंतरतम रंग जाए।
🖊️सुभाष कुमार यादव