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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

रह रह कर

यार हमारे मिलते रहते हैं रहरह कर
जख्म पुराने खुलते रहते हैं रहरह कर

भूल गए वो बातें सब रहबर की जैसे
मसले कितने उठते रहते हैं रहरह कर

मुजरे की बस आदत होती है जिनको
तन्हाई में भी झुकते रहते हैं रहरह कर

हुश्न का जाल बिछाते हैं खूब शिकारी
चारा खूब दिखाते हैं मनको रहरह कर

दास तुम्हारी बस्ती में गुलशन का रस्ता
भंवरे ही आते जाते रहते हैं रह रह कर! !




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

Updesh Kumar Shakyawar said

बहुत सुन्दर शब्दों का संकल्न

Shiv Charan Dass replied

बहुत बहुत मान्यवर

Supriya sahu said

बहुत सुंदर रचना सर 👌👌, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

Shiv Charan Dass replied

आपका बहुत बहुत धन्यवाद

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! क्या ग़ज़ल है — हर शेर एक अलग ज़ख्म की तरह खुलता है, और फिर खुद ही मरहम भी बनता है।

Shiv Charan Dass replied

आपकी इनायत है बहुत बहुत शुक्रिया

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