"जिंदगी ये हमें किस मोड़ पे ले आई,
हुआ ये हादसा कि हमसे वो टकराई,
हमने नगमें गुनगुनाए और फिर वो मुस्कुराई,
हमने था सिर झुकाया उसकी पांव नजर आई,
उसके पांव में थी पायल जो कुछ छनक रही थी
उसके छनक की धुन हमारे कान तक सुनाई,
दिल को लगा हमारे कि मौसम बदल रहा है,
कि आसमां में जैसे बादल सा छा रहा है,
कि झूम उठी ये धरती,अंबर भी गा उठा है,
कलियां भी खिल गई और भौरें मचल रहे है,
जबसे निगाह तेरी इन निगाहों में नज़र डाली,
कि चैन खो गया है और नींद भी हमारी,
कुछ भी बचा नहीं अब तुझपे लुटाने को,
हम तेरे हो गए और तुम हो गई हमारी।।"
---- कमलकांत घिरी