जाने किन जंजालो में उलझे रहते तुम।
आराम से बैठी कहकर अन्दर रोते हम।।
बीते कल की यादे बरबाद कर देगी मुझे।
आँखें खोले लेटी रहती कहती सोते हम।।
बाते करने वाला मन रहने लगा अशांत।
कोई पूछें अगर तो कहती सुकून से हम।।
तेरी ग़ज़ले अब मुझ को नही बहलाती।
हिज्र की रातो से 'उपदेश' नाशाद है हम।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद