मैंने समय से पूछा था —
“क्या तुझे पता है
कौन था वो,
जिसकी उँगली थाम
मैंने चलना सीखा था?”
वक्त चुप रहा…
जैसे कोई आईना,
जिसमें कोई चेहरा नहीं रहा।
वो गोद…
जिसमें मेरी पहली नींद उतरी थी,
अब सूनी है —
जैसे कोई पालना
सिर्फ हवा में झूलता हो।
मैं हर अठखेली को
अपने सीने में छुपा कर
जैसे कोई टूटा खिलौना
दिल की तह में रख आया हूँ।
उनकी बातें अब
स्मृति की धुन बनकर
हर रात —
मन की छत पर
चुपचाप उतरती हैं।
वक्त तो बस
हर नाम के आगे
एक तारीख लिखता है,
जैसे दरवाज़े पर कोई
‘चला गया’ की चिट चिपका कर
आगे बढ़ जाता है।
अब मैं रोता नहीं…
क्योंकि आँसू भी थक चुके हैं,
अब मैं बस
उनके जाने की ख़ामोशी में
अपनी साँसें जोड़ता हूँ।
काश!
वक्त के सीने में भी
दिल होता…
तो वो भी किसी शाम
किसी नाम के लिए
पलभर ठहर जाता।
और कहता —
“मुझे भी दुख है तुम्हारा।”
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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