जब कभी ये मन हुआ है तार तार
हम भी बिखर के रोए हैं जार जार।
ऐसा हुनर उसको मिला है खुदा से
वो देखता है सब दिलों के आर पार
अश्क़ में डूबी फरियाद ये बेकार है
अब मसीहा सुनता नहीं ऐसी पुकार
दूर से हर कोई लगता है अच्छा बड़ा
नजदीक आकर आँख में भूनगे हजार
दास दिल की दास्तां सुनता नहीं वो
शायद उस पे रूप का हावी है खुमार II