दूरियाँ जब रिश्ता परखने लगे।
उठी बाते दिल मे खटकने लगे।।
आई याद कुछ अच्छा नही लगा।
उस घड़ी पुराने गाने सुहाने लगे।।
कल मसला की चाय बना कर पी।
वो प्रीति के पल झिलमिलाने लगे।।
इतने कठोर हो गए आते ही नही।
आँखों के सामने अँधेरे छाने लगे।।
और देरी गर आने में की 'उपदेश'।
तरह-तरह के कारनामे रुलाने लगे।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद