मेरे ख्यालो के बहते दरिया के पानी में।
अचानक बात हो गई अपनी नादानी में।।
माना कमियाँ बहुत है हर एक इंसान में।
ज़रूरत उसको भी मुझको भी जवानी में।।
मोहब्बत का सुन्दर रूप तब जन्म लिया।
जब खण्डहर में प्रेम पनपा राजा रानी में।।
पहली बार प्रेम सिखाया सीने से लगाकर।
पत्थर को अनश्वर बना दिया मेहरबानी में।।
हर गुप्त प्रतिज्ञा की खुशबू नथुनों में घुली।
पवित्र हो गया 'उपदेश' सांसो को रवानी में।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद