"ग़ज़ल"
जब से शराब-बंदी है शराब बिक रहा है!
मनमानी क़ीमतों पे बे-हिसाब बिक रहा है!!
इक दौर था जिस दुकान में बिकती थीं किताबें!
उस दुकान में अब देखो कबाब बिक रहा है!!
बाज़ार-ए-आलम में इक बुढ़ापा नहीं बिकता!
ये बचपन बिक रहा है वो शबाब बिक रहा है!!
कोई भी इम्तिहान अब मुश्किल नहीं रहा!
तुम सवाल ले के आओ जवाब बिक रहा है!!
ज़मीं-ओ-आसमाॅं को देखा है सब ने बिकते!
अब हवा भी बिक रही है ये आब बिक रहा है!!
दिल गुर्दा जिगर हर चीज़ है सब की है क़ीमत!
ऑंखों के साथ ऑंखों का ख़्वाब बिक रहा है!!
काॅंटों को आज तक कोई ख़रीदार न मिला!
चम्पा चमेली गेंदा गुलाब बिक रहा है!!
इस मंडी में हिजाब से ईमान तक 'परवेज़'!
हम क्या बताऍं क्या-क्या जनाब बिक रहा है!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
The Meanings Of The Difficult Words:-
*बाज़ार-ए-आलम=दुनिया के बाज़ार (the market of the world); *शबाब=जवानी (youth); *आब=पानी (water); *हिजाब=पर्दा या घूॅंघट या शर्म-ओ-हया (veil or bashfulness).