नफरतों की आँधियों में पलता रहेगा,
ये प्रेम का दीप, यूँ ही जलता रहेगा।
एक के बुझने से दूसरा जल जाता है,
ये प्रेम का जादू है बस चल जाता है,
ये सिलसिला यूँ ही सदा चलता रहेगा,
ये प्रेम का दीप, यूँ ही जलता रहेगा।
शमा की चाहत में जलता है परवाना,
गाता है प्रेम का गीत हो कर दीवाना,
भावों के आवेग से ये मचलता रहेगा,
ये प्रेम का दीप, यूँ ही जलता रहेगा।
गम के बादलों में सूरज छिपता कहाँ,
सच्चा प्रेम किसी कीमत बिकता कहाँ,
ये वो दरख़्त जो फूलता-फलता रहेगा,
ये प्रेम का दीप, यूँ ही जलता रहेगा।
नफरतों की आँधियों में पलता रहेगा,
ये प्रेम का दीप, यूँ ही जलता रहेगा।
🖊️सुभाष कुमार यादव