"ग़ज़ल"
ऐ काश! उन से एक मुलाक़ात हो जाती!
जो ठहरी है लबों पे वो बात हो जाती!!
चेहरे से गेसू हटते दिन शुरू हो जाता!
जो लहराती काली ज़ुल्फ़ें रात हो जाती!!
हम दोनों भीग जाते प्यार की बारिश में!
कुछ इस तरह से झूम के बरसात हो जाती!!
ग़मों के क़ाफ़िले लुट जाते आज ऐसे!
हर सम्त ख़ुशियों की बारात हो जाती!!
ऐ हुस्न! जान जाओ मैं शान-ए-इश्क़ हूॅं!
सर इश्क़ का जो झुकता मेरी मात हो जाती!!
काश! ऐ विधाता! तिरा एक नाम होता!
एक धर्म हो जाता एक ज़ात हो जाती!!
मेरी तरफ़ जो देख कर वो मुस्कुरा देते!
मेरे लिए 'परवेज़' वो सौग़ात हो जाती!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad