मैं जीवन की जंग हार चुका,
गलती से खुद को मार चुका।
इस मुर्दे को अपनाओगी क्या?
फिर भी मुझको चाहोगी क्या?
जब दुनिया ने ठुकराया,
मैं तेरे पास चला आया।
तुम दुनिया बन जाओगी क्या?
फिर भी मुझको चाहोगी क्या?
क्या तुमको इसकी भी खबर है,
कड़ी धूप और लम्बा सफर है।
ऐसे में साथ निभाओगी क्या?
फिर भी मुझको चाहोगी क्या?
इश्क की जंग है हार हुई तो,
गर दर्द नदी ना पार हुई तो।
तुम तन्हा जी पाओगी क्या?
फिर भी मुझको चाहोगी क्या?
अब दुनिया हो कितनी भी भली,
वक्त ए मेहस्सर बस तेरी गली।
तुम खिड़की पर आओगी क्या?
फिर भी मुझको चाहोगी क्या?
#छगन सिंह जेरठी
@Chhagan Singh Jerthi


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







