पति बोला पत्नी से तुम अपना धर्म निभाओ,
गर्मियों की छुट्टियां हैं कुछ दिन माईके होकर आओ,
इतने समय में मुझे भी सहनशक्ति मिल जाएगी,
तुम्हें फिर से झेलने की मुझ में ताकत आएगी,
मैं तो कहता हूं कुछ दिन वही पर टिक जाओ,
ग्रीष्मकालीन पूरी छुट्टियां वहीं पर बिताओ,
जब तक मैं यहां पर स्वर्ग का सुख पाऊंगा,
जो मन में होगा वह बनाकर खाऊंगा,
अब हर बात पर मुझको कोई नहीं डांँटेगा,
बिना किसी कारण के मेरा भेजा नहीं चाटेगा,
पत्नी का मायके जाना उस ईश्वर का वरदान है,
समाज की यह व्यवस्था मृतक पति मे भी फूंक देती प्राण है,
लेकिन कुछ है ऐसे भी अभागे जिन की पत्नियां मायके नहीं जाती है,
इस तरह वह उन पर कितना कहर ढाती है,
ऐसे बेचारे पतियों की प्रजाति को हमें बचाना होगा,
साल में एक बार मायके जाने का कानून लाना होगा,
अपने अधिकारों को हमें खुद ही बचाना होगा,
साल में एक बार मायके जाने का कानून लाना होगा।
"पत्नी का मायके जाना हर पति की आस है,
खुश नसीब वह पति जिसकी पत्नी का मायका पास है।"
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'