बचपन सुनहरा गुजरा वही दिन आते नही।
ग़म भी निकम्मे हो गए अब रास आते नही।।
परेशान कौन नही यही जिन्दगी का कहना।
इसलिए हर किसी को उँगली पकड़ाते नही।।
दर्द को दबा कर खुद को बीमार कर लिया।
इलाज मुमकिन था मगर दवा हम खाते नही।।
मेरी कहानी सुनने वाले ना मिले आज तक।
तुम मिले महसूस करते नज़रे मिलाते नही।।
आरज़ू बहुत 'उपदेश' कुछ कर गुजरने की।
परवरिश ने डरा दिया उससे पार पाते नही।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद