परमूल्यांकन की न हो किसी से कभी अपेक्षा ।
स्वयं को पहचानने की हो जो दृष्टि आपकी ।।
रिक्त न हो मन जब तेरा विषयों से ।
कैसी पूजा फिर कैसी इबादत आपकी ॥
सम्बन्धों में कभी न हो कलह, कलुषता ।
कर्तव्यों के प्रति हो जो निष्ठा आपकी ।।
जीवन यात्रा में सन्तुष्टि संभव हो फिर ।
सबकी प्रसन्नता में हो जो प्रसन्नता आपकी ।।
परनिंदा कभी किसी की कर न पाओ।
अपने दोषों पर भी हो जो दृष्टि आपकी ।।
----डाॅ फौज़िया नसीम शाद