डगमग पाँव, नन्हा हौसला, आँखों में उजियारा,
धरती से पहला संवाद, नभ तक जाने का इशारा।
माँ की बाँहें पास खड़ी, दीवारों का भी साथ,
हर ठोकर में छिपा हुआ, जीवन का पहला पाठ।
खिलौनों की वह मुस्कानें, आँसू की वह धार,
गिरने-उठने की रीतों में ढलता जीवनसार।
मिट्टी में सना स्वप्न ,जब उठता बनकर पाँव,
हर चोट बन जाती है तब भीतर का प्रभाव।
न बोले शब्द, पर चेतन में जगी अनोखी पीर,
हर रुकावट ने ही दी उसको चलने की तीर।
और एक क्षण ऐसा आया, जब वो पग बढ़ाए,
जग हँसा, माँ मुस्काई, नभ ने बाँहें फैलाए।
वही राग फिर जीवन में गूँजता और कहीं,
जहाँ स्वप्नों की राहों में जमी हो धूल वही।
जहाँ थकान हो, अपमान हो, हो भीतर संशय,
वहाँ उठते हैं क़दम वही, जो होते हैं अभय ।
कभी हँसी में छिपा हुआ, संघर्षों का गीत,
कभी मौन में बोल उठे, मन के घायल मीत।
जो शिशु गिरा था तब चला, अब बढ़ चला जवान,
वह सपनों के रण में बना, स्वाभिमान की जान।
राह कठिन हो, शूल भरे, हों साजिश के दाँव,
पर जो पहली बार चला, वो क्या रोकेगा पाँव?
संधान वही, संकल्प वही, है वह आग पुरानी,
हर गिरावट अब कहती है—"जीत तेरी कहानी।"
कदमों से अब धरती काँपे, नभ तक जाए स्वर,
यह यात्रा उस बच्चे से जो कह न सका मगर—
कि जीवन है पहली चाल, और प्रयास ही पहचान,
यही प्रथम पग एक दिन बनते हैं अभियान।।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




