खूब उलझा रहे हैं सवालों को आजकल
अंधेरे ही खा रहे हैं उजालों को आजकल
बाज आयेंगे नहीं दुश्मन तो चालबाजी से
हवा दे रहे हैं सभी बवालों को आजकल
कौन समझेगा दुनियां की सियासत अब
चूहे खा रहे हैं सारे रिसालों को आजकल
दास राहतें हमको भी तो मिलें महफिल में
साकी नहीं देते लब प्यालों को आजकल
महज लकीरें हाथों में लेके आएं हैं फ़क़ीर
इस लिए तरसते हैं निवालों को आजकल

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




