पाँच साल का वक़्त
पाँच साल बीतने को हैं इस शहर में
न पूछना वक़्त कैसा बीता,कैसा निकला
नए लोग,नया रहन-सहन तो मिला
पर न हम किसी को अपना पाए,न कोई हमें
और जो अपने थे,वो भी आज अपने नहीं रहे..
माना कि इस शहर के लोगों से अपनी दोस्ती नहीं हुई
मगर यहाँ के पेड़-पौधों से
बहती हवा से
महकती मिट्टी से
यहाँ के पक्षियों से अपना याराना सच्चा और अच्छा रहा ..
वन्दना सूद