रचनाओं के ऊपर क़ातिल हसीनाओं की तस्वीर,
देख भड़क गईं श्रीमती जी मेरी !!
भड़क कर उन्होंने कहा,
आज जाकर खुली है पोल आपकी !!
तभी तो समझूँ ,
आजकल आप मेरी तरफ क्यूँ देखते ही नहीं हो !!
दिन भर क्यूँ मोबाईल में ही घुसे रहते हो !!
कभी मुझ पर भी तो एकाध शृंगार रस की कविता टपकाया करो !!
शृंगार न सही कम से कम,
मुझे मोटिवेशन ही ठहराया करो !!
मैंने अपने बचाव पक्ष को,
मज़बूत करते हुए अपनी सफाई में बस इतना ही कह पाया ..
मेरी श्रीमती जी,
मैं ही तो हूँ तुम्हारा श्री
और तुम्हीं तो हो मेरी मती !!
यानि श्री की मती !!
जब तुम हो सही तो,
क्या मैं गलत हो सकता हूँ भी कभी !!
क्या तुम्हें अपने करवा चौथ पर भी विश्वास न रहा जानू..
इतने सारे तुम्हारे उपवास के बावजूद,
क्या गलत हो भी सकता है मुझ जैसा पत्नीव्रता पति भी कभी..
वो सारी तस्वीर तो मेरी रचनाओं पर न्योछावर हैं मात्र !!
धीरे से ही सही..
मेरी रचनाओं को पढ़ने के लिए लोग आ तो रहे हैं कम से कम !!
आज ये छोरियाँ आ रही हैं..
कल कौन जाने अम्बानी ही आ जाये !!
तुम्हारे श्री की रचना पर बस एक नज़र पड़ जाये किसी की..
फिर तुम भी हिट और तुम्हारा
श्री भी हिट !!
तब जाकर उन्हें कन्वियेन्स कर पाया..
और हौले से बोलीं..
तब तो ठीक है जी..
फिर तो लगे रहिये..
लेकिन..अगर..मगर..किन्तु..परन्तु..
( शर्तें लागू हैं )
- - वेदव्यास मिश्र
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




