तुम्हे लिखते हुए अक्सर सोचता हूँ कि तुम न होती तो मैं किसे लिखता। तुम, मुझसे कहीं दूर एक कस्बे में किसी छत पर खड़ी आसमान को देख रही होगी। मैं सिर्फ तुम्हारी कल्पना करके तुम्हे लिख रहा होता।
उदासियों में महसूस कर लेने को भी हमारी ऊँगलियाँ कभी नहीं उलझी।
मैं कभी तुम्हारे कस्बे नहीं आया, तुमने कभी जमुना नहीं देखी। फिर भी, हम दोनों एक-दूसरे को ज़िंदगी के अंधेरों में टटोलते रहते। हम दोनों इतने दूर होकर भी, कभी न मिलकर भी, हर रोज कैसे मिल जाते हैं!
बातें करते हैं, वक्त की सलाईयों पर यादें बुनते हैं!
तुम अभी अपने कमरे में किसी ख़याल में ग़ुम होगी।
मैं तुम्हे लिख रहा होता।
मैं तुमसे कभी नहीं मिला पर लगता है जैसे सदियों तुम मेरे पहलू में रही हो। जैसे तुमसे पहले और तुम्हारे अलावा मैं कुछ नहीं जानता हूँ। तुम्हारी आवाज़ सुनकर मैं मुस्कुरा उठता हूँ और लिख देना चाहता हूँ किसी पन्ने पर 'मोहब्बत में दूरियों की बंदिशें नहीं होती।
तुम्हे लिखते हुए मैंने जाना है कि तुम्हे लिखते रहना भी, तुमसे मिलते रहने का जरिया है।
मैं तुम्हे लिखता रहूँगा, जब तक कि देखने को तुम्हे मेरे हिस्से का आसमान नहीं मिल जाता या फिर जमुना तुम्हारे कस्बे से नहीं गुजरती फिर पढ़ लूँगा तुम्हारे चेहरे को और तुम पढ़ाना अपने तजुर्बे।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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