गुज़रते हैं जब भी तेरी गली से
हमारे चेहरे का नूर ही बदल जाता है,
दाखिल होते ही तेरी गली में
महसूस तू होने लगता है।
गुज़रते हैं जब भी तेरी गली से
सांसें थम जाती है,धड़कने बढ़ जाती हैं,
पता नहीं कैसा है ये तेरा और मेरा रिश्ता ? दिल में हलचल बढ़ जाती है।
गुज़रते हैं जब भी तेरी गली से
निगाहें तुझे ढूंढने लगती हैं,
तू खड़ा होगा अपने घर के बाहर
या दिख जायेगा घर के अंदर
ये निगाहें इसी तलाश में रहती हैं।
- रीना कुमारी प्रजापत