सत्ता के नशे में चूर,
जांच नहीं होने देते।
कानून के ठेकेदार,
सच को छुपाते रहते,
अंधेरे में डूबा देश।
न्याय की पुकार,
सुनता कौन?
भ्रष्टाचार का जाल फैला,
हर तरफ है दाग का घन।
सत्ता का नशा,
चढ़ा सिर पर।
अहंकार का बांध ,
टूटा बेखौफ होकर।
करते अपराध,
कानून को ठेंगा दिखाया ।
गरीबों की,
आवाज़ दब जाती।
अमीरों की बात ,
मान ली जाती ।
बेगुनाहों को सजा मिलती,
गुनाहगार मुस्कुराते।