प्रिये नया साल बन आना
सारे मौसम सभी ऋतुओं को संग ले आना।
प्रिये तुम नया साल बन के मेरे घर आना।
सर्दियों में मेरे सीने से लिपट जातीं हैं,
जब ठिठुरती हुई यादें तुम्हारी आतीं हैं,
प्यार की गुनगुनी सी धूप संग ले आना,
प्रिये तुम नया साल बन के मेरे घर आना।
जब भी आते थे तो फागुन की तरह आते थे,
अपनी सतरंगी यादें छोड़ चले जाते थे।
मिलन की सुबह शाम रात संग ले आना,
प्रिये तुम नया साल बन के मेरे घर आना।
याद जब आती तेरे हाथों की वो गर्म छुअन,
शीत लहरों से विरह अग्नि में जलता है बदन,
झूमती गाती बहारों को संग ले आना।
प्रिये तुम नया साल बन के मेरे घर आना।
देखो आ के मेरी भीगी हुई पलकों को उठा,
प्यासे कजरारे नैन बन गये महावट की घटा,
बिन तुम्हारे बिताये युग भी संग ले आना।
प्रिये तुम नया साल बन के मेरे घर आना।
गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर