मन से मन मिलते देखे, देखे जो सपन निराले थे l
बुनने वाले वो ख्वाब मेरे ,कितने मन के वो काले थे l
झूठा -झूठा अहसास लगा ,समझा जो नसीबो वाले थे l
मंजिल जिस टेक खड़ी की थी ,सब अपने मतलब वाले थे l
मन से मन ........
भीतर से कितने खुश थे वो ,मरहम जो लगाने वाले थे l
जख्म भरे न नाशूर बने ,ये ख्वाब जो दिल में पाले थे l
मैं भूल गया जिन बातो को ,फिर याद दिलाने वाले थे l
तड़पन मुझको दे खुश होते ,कितने मन के वो काले थे l
मन से मन ......
अपना- अपना कहकर मुझको ,जो दिल से लगाने वाले थे l
ठोकर में हाथ बढाये थे ,खुद पत्थर जिसने डाले थे l
अंतरमन को छलनी करके ,जो आँसू पोछा करते थे l
दुख में सहलाते पीठ मेरी ,वो जाल भी जिनके डाले थे l
मन से मन .....
विश्वाश बढाने आते मेरा , विश्वाश घात वो करके जब l
खुशियों में साथ खड़े होकर ,दुख बाट निहारा करते थे l
चिंता फ़िकर जता करके ,वो हमको नापा कर्ते थे l
हम अपना उनको कहते थे ,हम कितने भोले भाले थे l
मन से मन ......
रिश्ते बनते दिल से दिल तक , ना थोपे जाते जन्मो से l
कुछ गैर भी कितने अपने थे , कुछ अपने मतलब वाले थे l
गुस्सा हो या दिल की चुभन ,बस दिल में रखने वाले थे l
कुछ घाव बढ़ाने वाले थे ,कुछ दर्द मिटाने वाले थे l
मन से मन मिलते देखे ,देखे जो सपन निराले थे l
तेजप्रकाश पाण्डेय लिखित ✍️गोलू