जिससे रौनक रही विदा हो गई उसकी।
सन्ताप का मौसम हुआ याद आ रही उसकी।।
दिन बीते मन खुश खोज रही अपनापन।
हल्की-फुल्की तकरार में हिम्मत टूटी उसकी।।
हौसला बुलंद चाँद से हर रोज़ मिल रही।
मन मंदिर के पट खुले ख्वाहिश टूटी उसकी।।
कंचन काया कब तक रौब बना कर रखे।
अरमान बिखरने से पहले आशाएं टूटी उसकी।।
जैसे पानदानी में पान तड़पते नमी के लिए।
बिन कत्था सुपारी 'उपदेश' किस्मत फूटी उसकी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद