जाने क्यों जिंदगी भी परेशान सी है मुझसे ,
इसकी थी कुछ मुश्किलें कहाँ सुलझी है मुझसे
हररोज़ एक नई परेशानी रूबरू होती है,
देखते है कब तक जिंदगी की निभती है मुझसे
एक अरसे से धोखा दे रहा हूँ मैं जिंदगी को भी
जाने कब से मेरा पता मौत पूछती है मुझसे
मैंने जिंदगी का सौदा रकीबों से कर लिया है
देखते है किसकी दोस्ती अब भी रहती है मुझसे
एहसान कोई कर मुझपे मयखाना ही पिला दे
आँख जिंदगी से कहाँ मिलाई जाती है मुझसे