तुम्हारी वाह - वाही
हमे लिखने को मजबूर कर देती है,
और तुम्हारी आह हमे अपने जज़्बातों को
तुमसे जोड़ने को मजबूर कर देती है।
कई दफ़ा रख देते हैं हम कलम,
पर उसी वक्त तुम्हारी याद हमे कलम उठाने को
मजबूर कर देती है।
जब तुम तारीफ़ें नहीं लुटाते हो तो ये दिल
उदास हो जाता है,
जब तुम मेरी नज़्में नहीं पढ़ते हो तो ये दिल
निराश हो जाता है।
एक नज़र ही सही पर देख लिया करो तुम
मेरी नज़्मों को,
क्योंकि जब तुम इन्हें टाल जाते हो तो ये दिल
परेशान हो जाता है।
पढ़ भी लो मेरी नज़्मों को
तो कुछ तो जताया करो,
अच्छी लगे तो अच्छी और बुरी लगे तो
बुरी ही बताया करो।
यूं फ़क़त शीर्षक देख मेरी नज़्म का
उसे छोड़ा ना करो,
उसकी रूह को छूकर फिर भलेही
निकल जाया करो।
आपकी हौसला - अफ़जाई के
आदी हो गए हैं अब हम,
जिस दिन ना लुटाते वाह - वाही
उस दिन उखड़े - उखड़े से रहते हैं हम।
कभी वाह कहते हो कभी आह भरते हो,
लेकिन जिस दिन कुछ नहीं कहते
उस दिन बड़े उलझे - उलझे से रहते हैं हम।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




