आज फिर सन्नाटा गवाह बना,
द्वंद में उलझे भाव का आसरा बना।
बहुत बाते कही दिलोदिमाग ने,
मैं कुछ न बोली शांत का पहरा बना।।
परस्पर टकराती रही भंगिमाएँ,
स्वयं ही रहे पक्ष विपक्ष अखाड़ा बना।
उलझे चक्रव्यूह के दांव पेंच में,
प्रहार करने का अनकहा जमावड़ा बना।।
जीत चुका था मस्तिष्क मगर,
घायल हृदय का बोझ थोड़ा ना बना।
अपने निश्चय और अनिश्चय से,
व्यथित होकर 'उपदेश' अड़ा ना बना।।
आगे बढ़ गई गन्दगी से निकलकर,
हमारे बीच बढ़ता अन्तराल सुहाना बना।
उन कुछ मिनटों में कई युद्ध लडे गए,
अंततः युद्ध विराम अजब अफ़साना बना।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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