कापीराइट गजल
दिल करता है जब मेरा मैं मुस्कुरा लेता हूं
अब तन्हाई से महफिल, मैं सजा लेता हूं
उड़ने को मेरा मन, करता है जब कभी
तब खुशियों के नए पंख, मैं लगा लेता हूं
थक जाते हैं चलते-चलते, जब ये पांव मेरे
दीप आशा के वहीं पर, मैं जला लेता हूं
अंधेरों से पड़ा है, जब भी वास्ता ये मेरा
चांद तारों से रात अपनी, मैं सजा लेता हूँ
गुजरता हूं जब भी, मैं इन हंसी राहों से
इन राहों को कांटों से, मैं सजा लेता हूं
जब भी होती है ख्वाहिश चांद तारों की
इस जमीं पे आसमां को मैं बुला लेता हूं
लोगों की नजरों में तू, जिन्दा रहे यादव
अपनी महफिल में सबको मैं बुला लेता हूं
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है