संवेदना शून्य होती,
आज की पीढ़ी में,
केवल दिखावे का,
भाव ही भरा है।
जिस संस्कृति का,
अंधानुकरण कर रहे,
वह मानवता से हीन है।
आधुनिक पीढ़ी की,
इस मानसिकता को देख,
मन बहुत व्यथित हुआ।
आज विदाई के अवसर पर,
भावों को तिलांजलि दे,
वर्चस्व स्थापित हेतु,
भाव नहीं भव्यता का,
प्रदर्शन किया जाता है।
गुप्त जी ने कहा था,
विदाई का समय
करुणोत्पादक होता है।
यह सत्य ही है कि,
विदाई में संभाषण करते,
भावोद्रेक से कंठ अवरुद्ध हो,
नयनों से अश्रु की धारा,
कोपलों से झरती नीचे,
लड़खड़ाती हुई आवाज,
समेटे हुए कई भाव,
कई विचार, कई कथन,
सर्वार्थ करुणा से द्रवित,
विगत वर्षों की अनुभूतियाँ,
प्रेम, स्नेह, अपनत्व, आदर,
इन सबको समेटे केवल एक मौन।
नहीं दिखते ये सब,
आज की संवेदना हीन पीढ़ी में।
🖊️सुभाष कुमार यादव