ना जाने कौन था,
जो आज है
दूर नही,
यही कही
आस पास
ज़िंदा रख रहा मुझे,
तकलीफ दे रहा मुझे
पर ज़िंदा रख रहा मुझे,
फिर ये शब्द लिखवा रहा है
कोई तो शक्ति है,
दिख नही रही
कुछ दिख नही रहा,
महसूस होता है
पर दिख नही रहा,
अदृश्य है या मेरे देखते ही
कही छुप जाता है
पर कभी नज़र नही आता है,
बस महसूस होता है
नज़र आ रहा है तो अंत,
पर साफ नही है,
थोड़ा धुंधला से है
शायद करीब है,
कुछ सही नही है,
कुछ गलत भी नही है
क्या है,
कुछ साफ नही
शायद है साफ,
मुझे ही दिखता नही
पर कोई तो है,
कुछ तो है,
यहीं कहीं ....
----आदित्य द्विवेदी