चेहरे पहचाने जाते नहीं,जो मुखौटे उतर गए तो क्या..
रास्ते अब भी साथ हैं, कुछ मुकाम गुज़र गए तो क्या..।
आंखों में है नींद भी कुछ बाकी, ख़्वाब भी शादाब है..
ज़फा पर तेरी आंसुओं के, मोती बिखर गए तो क्या..।
तुम ही थे साथ मेरे, कोई और तो नज़र आया नहीं..
अब सम्भल जाएंगे, ज़माने वाले उधर गए तो क्या..l
कुछ शीशे सी उम्मीदें, खड़ी हर घर की चौखट पर..
वो बचेंगी कैसे जो वो, खाली हाथ घर गए तो क्या..।
दिल में अब भी हैं, उनके कुछ ख़लिश सी बाकी..
ज़माने की निगाहों में वो, कुछ सुधर गए तो क्या..।