बात का हल्कापन।।
संगी रहा संग किसके रहा,
बात कह न पाया और लफ़्ज़ देता रहा,
बिताने के लिए वक्त था मिलने के लिए सहता रहा,
बहुत शामिल थे हंसीं के दर पर,
मगर ग़म के आँसू मैं लेता रहा,
पाने को सिर्फ खोना ही था,
मांगने के लिए भी देता रहा,
जैसे नज़र आया नजारा,
धीरे से कम कम सांसें लेता रहा,
खुद को कहने के लिए औरों की सुनता रहा।।
- ललित दाधीच