चेहरे बंद थे,
दिल में तो जगह है,
अंतर्मन के प्याले में,
कुछ तो है जो छलक रहा है,
उसे बाहर निकालने की चेष्टा कर,
पहले जो अनदेखा सा था,
आज देखा देखा देखा है,
मत मान तू अभी,
शब्द जैसी प्रीत नहीं,
दिखावट करना होता तो पहले ही कर देते,
मौन रहना भी तो एक कला है,
तुम्हें देखता हूं तो ऐसा लगता है, यह जीवन अविरल बहता रहे,
बस जीवन यही है,जब भी मौन रहूं शब्द तुम बन जाओ।।
- ललित दाधीच।।